नवरात्र के चौथे दिन कूष्मांडा देवी की पूजा अर्चना होती है। मान्यता है कि जिस समय दुनिया में चारो ओर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था। संसार में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था, उस समय कूंष्माडा देवी ने अपनी मंद-मंद मुस्कान के साथ ही उदर से अंड उत्पन्न कर ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इस कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। आठ भुजाओं वाली मां कूष्मांडा देवी सिंह पर सवार रहती हैं। इनके हाथों में गदा, धनुष, कलश, बाण , चक्र, कमण्डल, जप माला कमल का फूल सुशोभित होता है।
मालपुए का प्रसाद:
मां कूष्मांडा देवी की पूजा करते समय उनके इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। रूधिराप्लुतमेव च । दधानां हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे …। अष्टभुजा देवी के नाम से भी प्रसिद्ध मां कूष्मांडा की पूजा में फल, मेवा, लाल फूल व सोलह श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए। सुबह शाम देवी कूष्मांडा की आरती करनी चाहिए। कूष्मांडा देवी को मालपुए का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मां को मालपुआ अति प्रसन्न है। मां को भोग लगे प्रसाद को खुद ग्रहण करें और अन्य लोगों में भी बांट दें।
मां देती आशीर्वाद:
नवदुर्गा में कूष्मांडा स्वरूप की उपासना करने वाले साधक को धन–धान्य और संपदा के साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां कूष्मांडा देवी के तेज मात्र से ही साधक को शारीरिक कष्ट यानी कि रोगों से मिल जाती है। इसके अलावा इनकी अराधना करने वाले भक्तों को मानसिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। चौथे दिन विधिविधान से इनकी पूजा अर्चना करने से भक्तों को भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं। भक्तों को मां कूष्मांडा देवी लंबी आयु, यश, बल और प्रबल बुद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
महामाई के पावन नवरात्र में कूष्मांडा जी की पूजा अराधना से रुके कार्य सम्पन्न होते हैं। रविवार को नवरात्र के दिन हर जगह पर मंदिरों में श्रद्धालुओं ने माता की चरणों में शीश झुकाया। शहर के मंदिर निर्धन निकेतन में भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया। श्रद्धालु मंदिर आकर महामाई के चरणों में अपनी श्रद्धा के फूल अर्पित किए।
मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित टिक्का राम ने बताया कि मंदिर के किवाड़ सुबह से ही खोल दिए गए थे, ताकि महामाई का लोग दर्शन कर सकें। उन्होंने बताया कि चतुर्थ माता कूष्माण्डा जी ममता से भरी हैं और इनका ध्यान करने से मन को शांति मिलती है। उन्होंने बताया कि कूष्माण्डा माता का मुख्य स्थान भीमा पर्वत पर है। उन्होंने बताया कि माता जी के कई नाम हैं, जिनमें मुख्य रूप से शाकम्बरी मां नाम शामिल है और इनकी मन से की गई पूजा से खुश होकर माता अपने भक्तों के सदा साथ रहती हैं। उन्हें किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता है। उनका मानना है कि नवरात्र में तन–मन से की गई पूजा का लाभ अधिक होता है। क्योंकि माता जी के नवरात्र के विशेष दिन व स्थान रखते हैं।
उनका मानना है कि पूजा का स्थान चाहे कहीं भी हो, लेकिन इसमें शुद्धता बेहद जरूरी है। क्योंकि महामाई की पूजा आराधन करने के लिए जहां तन का साफ व शुद्ध होना लाजमी है, वहीं शुद्ध व साफ मन से की गई पूजा के चलते माता अपने भक्तों के सब कार्य सही करती हैं।
माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे समस्त अमांगलिक व अशुभ विचारों का नाश करके संस्कारमय जीवन जीने की राह दिखाता है। यह हमें प्रज्ञा व तेज प्रदान करके हमारे जीवन को नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है। माँ के कल्याणकारी स्वरूप का ध्यान हमारी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करके हमारी आसुरी व विध्वंशक प्रवृत्तियों का समूल नाश करता है। यह हमें जीवन के कठिन संघर्षों में भी धैर्य, आशा व विश्वास के साथ आगे, बढ़ते रहने की प्रेरणा प्रदान करता है।
माँ के देदीप्यमान स्वरूप का ध्यान हमारे निकृष्ट विचारों को जड़ से नष्ट करके हमें पवित्र विचारों से ओत–प्रोत करता है। यह हमें अज्ञान के तमस से मुक्ति प्रदान करके हमें स्वयं पर भी विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करता है।माँ के ज्योतिर्मयी स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर सतत पुरूषार्थ व क्रियाशीलता की भावना को जागृत करके कल्याण के मार्ग पर उश्ररोश्रर बढ़ते रहने की राह दिखाता है। यह हमें दिव्य शक्तियों के सुसंपन्न करके हमें सर्वथा भय–मुक्त करता है।
ध्यान मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है।